मृत्यु पूर्व लिखे गए उनके पत्र को शांतिधाम में खोलकर सबको सुनाया गया
मृत्यु भोज, पगड़ी रस्म न करने की दी हिदायत
65 वर्षीय भूतपूर्व सैनिक श्यामराव दबंडे के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए स्थानीय शांतिधाम में भारी जनशैलाव उमड़ा।
उन्होंने मृत्यु पूर्व जो पत्र लिखा था उसमें यह शर्त थी कि मृत्यु के बाद ही उसे खोला जाए। उनकी इच्छा की पूर्ति करते हुए अंतिम संस्कार के पश्चात आयोजित श्रद्धाजंलि सभा में शांतिधाम में ही उस पत्र को लिफाफे से निकालकर सभी को सुनाया गया।
स्व. श्यामराव दबंडे तवाबांध के समीप रानीपुर ग्राम पंचायत में 1991 से 94 तक सरपंच रहे एवं सन् 1995 से 2000 तक वह रानीपुर क्षेत्र से जनपद पंचायत केसला के सदस्य भी रहे।
श्यामराव दबंडे 17 वर्ष की आयु में भारतीय सेना में शामिल हुए थे और 1992 में जबलपुर से लांस नायक के पद से सेवानिवृत्त हुए।
श्यामराव दबंडे मुलताई तहसील के ग्राम सिलादेही के रहने वाले थे और उनके पिता खुसरू गांव में ही मिस्त्री का कार्य करते थे।
स्व. श्यामराव दबंडे अपने पीछे दो पुत्र और एक पुत्री छोड़ गए है।
1992 में भारतीय सेना से सेवानिवृत्ति के पश्चात उन्होंने रानीपुर को ही अपना कार्यक्षेत्र बनाया और सबसे पहले उन्होंने भूतपूर्व सैनिक कोटे में बैंक से एक जिप ली और उसे रानीपुर और इटारसी के बीच में स्वंय ने चलाया।
स्व. श्यामराव दबंडे शहर एवं ग्रामीण क्षेत्रो में दोनों ही जगह अति लोकप्रिय थे। वह पिछले पांच वर्षो पुरानी इटारसी में ही रह रहे थे। उनके निधन का जिसने समाचार सुना वह शांतिधाम जा पहुंचा। वह एक मिलनसार और सामाजिक कार्यो में रूचि रखने वाले व्यक्ति थे।
उनके पुत्र हुतेश दबंडे ने चिता को मुखागनी दी। शांतिधाम में आयोजित श्रद्धाजंलि सभा में सभी ने नम आंखो से दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धाजंलि दी।